किसके बोल हैँ मेरी स्याही ...
कुछ मैँ केह्ता कुछ मैँ सुनता
कुछ अपने लब्ज़ोँ मैँ बुनता,
कुछ बातेँ जो छुप जाती हैँ,
कुछ जो केह कर कर भी जाता।
स्याही से सब छलक के आते,
फ़िर भी बचते तो दिल पर रखता,
वो जो आँखो से है दिखता,
उनको मैँ किस कलम से लिखता।
सुनने वालोँ की खिदमत मेँ,
कुछ अल्फ़ाज़ ये जोडे हैँ,
न इन्होने तख्ते पलटे,
न तक्दीरों के रुख मोडे हैँ।
हर किसी का इन पर हक है,
मेरे हिस्से के थोडे हैँ.
किससे पूछूँ कौन सा मेरा,
जिसका उस पर ही छोडे हैँ।
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